Thursday, September 14, 2017

काल काळ्या गेला...

काल काळ्या गेला ..काळ्या sucker मासा  होता .. आता  guilt घेऊन  किंवा  वाईट  वाटून  उपयोग  नाही ..
फिश  टॅंक  आणला  त्या  सोबत  तो  आला  होता ..आईला  वाटलं  तो  मेलाय  म्हणून  त्याला  फेकून  देणार  इतक्यात  तो  हलला  ..त्यानंतर  गेले  ३  वर्ष  तो  होता ..
आकर्षण गोल्ड  फिश  होता  पण  काळ्या आपला  इमाने  इतबारे  टॅंक  साफ  करायचा ..गोल्ड  फिश  ची  घाण  खायचा ..आणि  आम्हाला  बरं वाटायचं  कि  त्याला  वेगळा  काही  खायला  द्यावा  लागत  नाही  आणि  मुळात  काही  दिवस  टॅंक  साफ  ना  केल्याने  काही  फरक  पडत  नाही ..काळ्या  आहे  ना ..
हळू  हळू  फिश  टॅंक  ची  excitement कमी  झाली  आणि  आई  वर  सगळी  responsibility अली ..एक एक  करत गोल्ड  फिश  पण गेले ..हा  एकटा  राहिला ..त्यासाठी  फिश  टॅंक  काही  महिने  तसाच  ठेवला  होता  पण  पंप  बंद  पडला  होता  , बल्ब  गेला  होता  पण  काळ्या  ला  काही  लागत  नाही  म्हणून  दुरुस्त  करायचे  कष्ट  घेतले  नाहीत ..
रेवा  आता  उभी  राहायला  लागलीये ..उगा  कुठे  तो  टॅंक  अंगावर  ओढून  घेईल  ह्या  भीतीने  तो  टॅंक  काढायचा  निर्णय  घेतला ..काळ्या  ला  एका  नवीन  कोऱ्या  डस्टबिन  मध्ये  पाणी  घालून टेरेस   वर  ठेवला  आणि  टॅंक  माळ्यावर .

टेरेस वर  ठेवल्यावर एखादा  पक्षी त्याला उचलून नेईल  असा  वाटलं  होता  म्हणून  त्यावर  एक  फळी  ठेवली ..नंतर  ती  काढली ..
हळू  हळू  पाणी  गढूळ  व्हायला  लागला ..आतला  काही  दिसेनासा  झालं ..

एक  दिवस  संध्याकाळी  आल्यावर  आई म्हणाली कि बहुतेक काळ्याला उचलला पक्ष्या ने ..थोडा  वाईट  वाटलं ...
मग  अजून  2-4 दिवसांनी  आई  टेरेस  वर  गेली  आणि  तिचा  धक्का  लागला  डस्ट  बिन  ला  आतून  हालचाल  जाणवली  ..

मला  कळल्यावर  आनंद  झालं ..guilt निघून  गेलं.गणपती  विसर्जनाच्या रात्री अंधारात मी त्या डस्ट  बिन मधलाकाळ गढूळ पाणी काढलं आणि  नवीन  फ्रेश  पाण्यात त्याला सोडला आणि  पुन्हा  टेरेस  वर  ठेवलं..

ऋतिका ने  एक  aquarium  च्या  दुकानात  चौकशी  केली  तर  ते  म्हणले  कि  संभाजी  बागेत  किंवा  ताथवडे  उद्यानात  मासे  घेतात .. मी  हो  म्हणलं  आणि  काही  केलं  नाही .. संभाजी  बागे  समोर  ऑफिस  असून  काही  केलं  नाही  आणि  दर  शनिवारी  रविवारी  ताथवडे  शेजारी  2-3 तास  चहा  प्यायला  बसायचो  तरी  काही केला नाही ...


गेल्या  आठवड्यात  भयंकर  पाऊस  झालं ... एकदा  आला  डोक्यात  कि  गच्चीत  चक्कर  मारावी ...पण  काही  केलं  नाही ..

काल  रात्री  घरी  आलो ..ऋतिका  ला  म्हणलं  कि  मी  आज  linkedin वर  मेलबॉर्न मधले  जॉब  opportunities शोधात  होतो . एकुणातच  मला  ते  शहर  फार  आवडलंय . त्यावर  एक  वाद -चर्चा -संवाद  झालं ...इथली  लोकांपासून लांब जायचं का ? तुला मिसळ कुठे मिळणार?
मी म्हणलं कि फक्त option बघत  होतो  ..कुठलाही  निर्णय  घेतला  नाहीये ..

झोपताना  आई  म्हणाली  आज  काळ्या  खरंच  गेलं ..त्याला  झाडाच्या  कुंडीत  ठेवून  दिलाय  खत  म्हणून . त्याचे  कधी  काही  नखरे  नव्हते , कधी  विशेष  लक्ष  द्यावा  लागला  नाही ..त्याने  काही  डिमांड  केला  नाही ..माझा मलाच राग येत होता..

झोपताना विंदांची कविता वाचत होतो
"कधी  धावतो  विश्व  चुंबावयाला
कधी  आपणाला  स्वहस्तेच  शापी"

रात्री  मला  माझ्या  आजूबाजूची  सगळी  काळी  माणसं  दिसायला  लागली ...